Sunday, February 14, 2010

अकेला हूँ मैं ........।

अकेला हूँ मैं

बिल्कुल अकेला

दुनिया की चक्काचौंध से

बन्द है मेरी आँखें

चल रहा हूँ ऐसे

जैसे बहता है पानी का रैला

अकेला हूँ मैं ........।

चुभते है पैरों में कांटे

दर्द से कराहता हूँ

न जाने कैसी मजबूरी

रो नहीं पाता हूँ

अकेला हूँ मैं........।

चाहता हूँ मिले मुझको

दिये की रोशनी

हर मोङ पर बसी हो

फूलों की एक बस्ती

पर शायद ही सच हो

मेरा सुनहरा सपना

क्योंकि....अकेला हूँ मैं .....।

Saturday, December 26, 2009

भगतसिंह का जन्म


वर्तमान राष्ट्रीय परिवेश में प्रत्येक नागरिक के हृदय में यही इच्छा होती होगी कि एक बार फिर से भगतसिंह का जन्म होना चाहिए लेकिन इसके साथ ही एक ओर प्रार्थना करना भी शायद लोग न भुलते होगें वह यह कि भगतसिंह पङोसी के घर पैदा हो न कि उनके खुद के घर में ! इस कटु सत्य के पीछे सिर्फ एक ही कारण छिपा है और वह यह कि लोग शकुन और शान्ति भरे जीवन की अभिलाषा तो करते है लेकिन वह शकुन और शान्ति उन्हें दुसरों के भरोसे मिले इसके लिए स्वयं कोई भी कष्ट नहीं उठाना चाहता, अगर भगतसिंह मेरे घर में पैदा हुआ तो इससे मुझे क्या सुख मिलना है मेरी किस्मत में तो फिर सिर्फ रोना ही लिखा जायेगा फायदा तो मेरे राष्ट्र की जनता का होना है ओर इस व्यक्तिवादी युग में राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ सुखी जीवन की कल्पना भी कठिन है ओर फिर भगतसिंह को अपना जीवन न्यौछावर करके क्या सुख मिला होगा इसकी कल्पना करना आज के हालात में असम्भव सा प्रतीत होता है साथ ही भगतसिंह को अपना जीवन बलिदान करके जो भी सुख मिला हो उसके घरवालों को तो रोना ही पङा था !

जो हो रहा है वह ठीक नहीं है ! जहाँ देखो भ्रश्टाचार बैमानी और कपट के दम पर लोग सफलता प्राप्त करने के प्रयत्नों में लगे हुए है।