अकेला हूँ मैं
बिल्कुल अकेला
दुनिया की चक्काचौंध से
बन्द है मेरी आँखें
चल रहा हूँ ऐसे
जैसे बहता है पानी का रैला
अकेला हूँ मैं ........।
चुभते है पैरों में कांटे
दर्द से कराहता हूँ
न जाने कैसी मजबूरी
रो नहीं पाता हूँ
अकेला हूँ मैं........।
चाहता हूँ मिले मुझको
दिये की रोशनी
हर मोङ पर बसी हो
फूलों की एक बस्ती
पर शायद ही सच हो
मेरा सुनहरा सपना
क्यूँ हो भाई अकेले ? दुनिया में इतने रंग है ,कभी देखिये उनको....!हजारों महफ़िलें सजी है दुनिया के बाज़ार में ....आखिर इस दर्द ,अकेलेपन का राज़ क्या है ? दवा क्या है ?
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